हार्ट फेल से होने वाली मौतों के मामले में भारत दूसरे नंबर पर
नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और उससे सटे एनसीआर क्षेत्र की हवा में प्रदूषण का स्तर बेहद खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। हवा में प्रदूषक तत्वों के चलते चारों ओर धुंध सी छाई हुई है। हवा में मौजूद ये प्रदूषण आपके दिल की सेहत के लिए खतरा बन सकता है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन (एएचए) की ओर से हाल ही में पेश की गई एक रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है। इस रिसर्च में शोधकर्ताओं ने पाया कि आपके लिए हवा में मौजूद पीएम 2.5 कण बेहद खतरनाक हैं।
हवा में पीएम 2.5 का स्तर बढ़ने के साथ ही हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। इस रिसर्च में पाया गया कि मार्च 2020 में कोविड-19 के चलते अमेरिका में लगाए गए लॉकडाउन के चलते हवा में पीएम 2.5 के स्तर में कमी आई जिसके चलते अमेरिका में हार्ट अटैक के मरीजों की संख्या में भी कमी आई। शोधकर्ताओं ने पाया कि हवा में पीएम 2.5 का स्तर बढ़ाने में सबसे अधिक भूमिका पेट्रोल और डीजल गाड़ियों से निकलने वाले धुएं, कारखानों से निकलने वाले धुएं और बिजली संयंत्रों में जीवाश्म ईंधन के जलने से निकलने वाले धुएं की है।
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इस धुएं में मौजूद बेहद छोटे कण सांस के जरिए खून तक और खून के जरिए लोगों के फेफड़ों और दिल तक पहुंच जाते हैं। इसके चलते दिल तक जाने वाली धमनियां भी सख्त हो जाती हैं। ये प्रदूषण कण ही दिल के दौरे के खतरे को बढ़ाते हैं। रिसर्च में साफ तौर पर पाया गया कि हवा में मौजूद पीएम 2.5 की मात्रा अधिक होने पर दिल के दौरे का खतरा बढ़ जाता है, जिसे एसटी-एलिवेशन मायोकार्डियल इंफेक्शन (एसटीईएमआई) के रूप में जाना जाता है। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण एजेंसी की वेबसाइट से पूरे अमेरिका में औसत दैनिक पीएम 2.5 की मात्रा का भी पता लगाया।
इस दौरान कुल 60,722 एसटी-एलिवेशन मायोकार्डियल इंफेक्शन के मरीज आए। वैज्ञानिकों ने पाया कि पीएम 2.5 की हवा में मात्रा घटने पर प्रत्येक 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की कमी के कारण, इन गंभीर दिल के दौरे में 6 फीसदी कम थे। यह हर 10,000 व्यक्ति प्रति वर्ष के लिए 374 कम दिल के दौरे के बराबर है। इससे साफ पता चलता है कि हवा में पीएम 2.5 का स्तर घटने पर हार्ट अटैक की संभावनाएं कम हो जाती हैं। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के मुताबिक हवा प्रदूषण अधिक होने से बुजुर्ग लोगों में दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।
अगर कोई व्यक्ति घातक वायु प्रदूषण के हालात में कम समय के लिए भी रहता है तो उसमें भले ही हार्ट अटैक का खतरा कम हो लेकिन स्ट्रोक और दिल की अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। 2020 में एक रिसर्च में पाया गया कि हवा में सूक्ष्म कणों या पार्टिकुलेट मैटर अधिक होने से लोगों में पार्किंसन रोग का खतरा बढ़ जाता है। लंबे समय तक वायु प्रदूषण के चलते धमनियों में क्लॉटिंग, ब्लड प्रेशर और शुगर जैसी बीमारियां हो सकती है। वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के फीजीशियन और महामारी विशेषज्ञ डॉ. जोल डी कुफमेन ने 2016 में अपनी एक रिसर्च के जरिए साफ कर दिया कि महानगरों में रहने वाले लोगों की धमनियां हवा में मौजूद पीएम 2.5 और नाइट्रोजन ऑक्साइड के चलते सख्त हो जाती हैं।
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भारत और चीन में हार्ट फेल के मामले काफी तेजी से बढ़ रहे है। भारत और चीन जैसे देशों में वायु प्रदूषण भी कार्डियोवास्कलुर रोग और सांस की बीमारी जैसे रोगों का प्रमुख कारण है। दुनिया भर में हार्ट फेल से होने वाली मौतों के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है। अकेले भारत और चीन में विश्व के 46.5 फीसदी नए मामले सामने आए हैं। यह खुलासा यूरोपियन जर्नल ऑफ प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी में प्रकाशित शोध में हुआ है। प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के मुताबिक इस्केमिक (आईएचडी) हृदय रोग के दुनियाभर में मामलों का करीब चौथाई हिस्सा अकेले भारत में होता है।
डब्ल्यूएचओ ने 2019 में दुनिया में होने वाली मृत्यु के 10 कारणों की रिपोर्ट जारी की थी। जिसमें दिल का कारण प्रमुख था। दिल की बीमारी, स्ट्रोक, क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (लंबे समय तक फेफड़ों में रुकावट), श्वसन संक्रमण, नवजात को होने वाली बीमारियां व समस्याएं, श्वासनली, ब्रोन्कस और फेफड़ों के कैंसर से होने वाली मौत, अल्जाइमर और मनोभ्रंश, डायरिया, डायबिटीज और किडनी की बीमारियां।
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